आर मॉल (ग्रुप एक्टिविटी) - रिपोर्ट
- अशोक गुप्ता
रिसर्च के लिए हमारे ग्रुप ने मुलूंड के 'आर मॉल' का निरक्षण करने का फैसला किया। फिर क्या था हम पहुंचे 'आर मॉल'। हमारे ग्रुप के ज्यादातर लोग अपंग हैं। पहुंचने पर हमने देखा कि गेट के अंदर जाने के लिए जो रैम्प है उसके बाजू में बार नहीं लगे हुए हैं। अंदर भी दिवारों पर बार नहीं हैं। टोयलेट में व्हीलचेयर नही जा सकती। टोयलेट लेडीज और जेंट्स के लिए एक ही हैं।
थेटर में सीट तक पहुंचने के लिए सीढियॉं हैं। सीढियों के बजाय रैम्प होना चाहिए। थेटर में ऐंट्री जहॉं पर होती हैं वही के पास की लगभग १० (दस) सीटों को निकाल देना चाहिए जिससे कि व्हीलचेयर वालों को खुद से ही जाकर बैठने और व्हीलचेयर को घुमाने में सुविधा हो सके।
व्हीलचेयर पर बैठा आदमी मेन गेट के रैम्प पर खुद व्हीलचेयर नही चढा सकता, उसे किसी न किसी की सहायता लेनी ही पडती हैं। इस कमी को सुलझाने के लिए या तो रैम्प की डिग्री को कम किया जाय या फिर ऊपर चढाने वाली बडे स्टेप की सीढियॉं लगाई जाय जिससे कि व्हीलचेयर आसानी से उसपर आ या समा जाय।
बाकी वहॉं काफी बडी जगह हैं। अंदर और कोई 'ऐक्सेसबिलिटी' कोई कमी नही हैं। वहॉं का स्टाफ बहुत ही 'कोऑपरेटिव' हैं। वहॉं की मौजूद जनता भी अच्छी थी।
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